पर्यावरण संरक्षण में भारत 'EPI 2022' की 180 देशों की लिस्ट में सबसे नीचे, भारत की स्थिति चिंताजनक, अब तक का सबसे बुरा प्रदर्शन India's 'EPI 2022' at the bottom of the list of 'EPI 2022' in Environmental Protection, the situation of India is worrisome, so far the worst performance

पर्यावरण संरक्षण में भारत  'EPI 2022' की 180 देशों की लिस्ट में सबसे नीचे

भारत की स्थिति चिंताजनक

अब तक का सबसे बुरा प्रदर्शन

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नई दिल्ली, 07 जून: दुनियाभर में पर्यावरण को लेकर एक मुहिम चलाई जा रही है और इसके संरक्षण की अपील की जा रही है। अलग-अलग देश पर्यावरण को बचाने की मुहिम चला रहे है, भारत में भी इस तरह की मुहिम चलाई जा रही है, लेकिन यह मुहिम वैश्विक स्तर पर सार्थक नजर आती नहीं दिख रही है।

पर्यावरण के मामले में 180 देशों की बात करें तो भारत इसमे सबसे निचले पायदान पर है। वर्ष 2022 में इंवॉयरमेंटर परफॉर्मेंस इंडेक्स में भारत सबसे नीचे है। इस लिस्ट में डेनमार्क पहले पायदान पर है, डेनमार्क को सबसे स्थिर देश के रूप में पहचा मिली है।

🌱 क्या है ईपीआई ?
बता दें कि ईपीआई हर दो साल के बाद अपने इंडेक्स को जारी करता है। हर देश को यह उसके द्वारा पर्यावरण के क्षेत्र में किए गए प्रयासों के आधार पर रैंक देता है। यह रैंक मुख्य रूप से तीन मुद्दों पर आधारित होती है, पहला पारिस्थितिक तंत्र जीवन शक्ति दूसरा स्वास्थ्य और तीसरा जलवायु को लेकर नीति है। इन्ही के आधार पर देशों की रैंक निर्धारित होती है। इस इंडेक्स की शुरुआत 2002 में हुई थी। यह वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, येल सेंटर फॉर इन्वॉयरमेंटल लॉ एंड पॉलिसी व कोलंबिया यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इंफॉर्मेशन नेटवर्क के साथ मिलकर काम करता है। 2022 साझा प्रोजेक्ट येल सेंटर व कोलबिया अर्थ इंस्टिट्यूट का है।

🌱 बाकी की रिपोर्ट से ज्यादा सटीक
ईपीआई की रिपोर्ट को बाकी की रिपोर्ट से ज्यादा सटीक माना जाता है। इसमे पर्यावरण से जोखिम, हवा की गुणवत्ता, पीएम 2.5 की स्थिति, सांस लेने लायक हवा, पानी के श्रोत, ग्रीन इंवेस्टमेंट, ग्रीन इनोवेशन, जलवायु परिवर्तन को लेकर देश के नेतृत्व की गतिविधियों को शामिल किया जाता है। इसकी वेबसाइट पर जानकारी दी गई है कि 40 मानकों पर देशों के द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयासों के आधार डेटा तैयार किया जाता है। ईपीआई 180 देशों के प्रदर्शन का आंकलन करती है।

🌱 भारत को लेकर क्या कहा गया रिपोर्ट में
भारत की बात करें तो रिपोर्ट में कहा गया है कि उसकी 180वीं रैंक चौकाने वाली नहीं है। नीति के स्तर पर सरकार पर्यावरण से जुड़े कानून को मजबूत करने की बजाए, नए कानून बना रही है, जिससे की मौजूदा नीतियों को कमजोर किया जा सके। कोस्टल रेग्युलेशन जोन, वाइल्डलाइफ एक्ट जंगल में खनन को रोकने के लिए हैं, जोकि खतरे में है। सरकार सतत पर्यावरण को बचाने की बजाए उद्योग को आगे बढ़ा रही है। पश्चिमी घाट औद्योगिक प्रोजेक्ट्स के चलते खतरे में हैं। यहां के जीवों के लिए चिंता बेहद कम दिखाई देती है।

🌱 भारत की स्थिति चिंताजनक
देश में पानी को लेकर भी रिपोर्ट में चिंता जाहिर की गई है। भारत में बोरवेल की काफी बड़ी संख्या में अनुमति दी गई है, पिछले 10 सालों में भारत लगातार ईपीआई की लिस्ट में पिछड़ता नजर आ रहा है। इस समय जब दूसरे देश कोयले के इस्तेमाल से कतरा रहे हैं, भारत ने इसपर निर्भरता को बढ़ाया है, जिसकी वजह से कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ा है, जोकि चिंता का विषय है और पर्यावरण के क्षेत्र में देश के लक्ष्य को हासिल करने में बड़ी बाधा है। ईपीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2050 तक अकेले चार देश भारत, चीन, अमेरिका और रूस 50 फीसदी ग्रीन हाउस गैसों के लिए जिम्मेदार होंगे, अगर मौजूदा दर से इसका उत्सर्जन जारी रहा।

🌱अमेरिका की भी स्थिति अच्छी नहीं
ईपीआई (EPI) को तैयार करते समय 40 परफॉरमेंस इंडिकेटर्स का इस्तेमाल किया गया है, जिन्हें 11 कैटेगरीज़ में बांटा गया है। इन इंडिकेटर्स से पता चलता है कि कोई देश पर्यावरण के लिए तय नीतिगत लक्ष्यों से अभी कितनी दूर है। इसी आधार पर इस इंडेक्स में क्लाइमेट चेंज परफॉरमेंस, एनवायरमेंटल हेल्थ और इकोसिस्टम वाइटैलिटी के आधार पर 180 देशों की रैंकिंग तय की जाती है। ताजा इंडेक्स में 180 देशों में सबसे कम 18.9 का स्कोर भारत को मिला है। म्यांमार (19.4), वियतनाम (20.1), बांग्लादेश (23.1) और पाकिस्तान (24.6) भी पर्यावरण से जुड़े नीतिगत लक्ष्यों को हासिल करने के मामले में काफी खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में शामिल हैं। खराब रैंकिंग बताती है कि इन देशों ने पर्यावरण की सस्टेनिबिलिटी से अधिक महत्व इकनॉमिक ग्रोथ को दिया है। चीन भी इस इंडेक्स में 28.4 अंक हासिल करके 161 वें स्थान पर है। पश्चिम के 22 अमीर लोकतांत्रिक देशों में अमेरिका 22वें स्थान पर है, जबकि पूरी लिस्ट में उसका नंबर 42वां है। ईपीआई रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप प्रशासन के दौरान पर्यावरण संरक्षण की अनदेखी के चलते अमेरिका की रैंकिंग कम हुई है। रूस इस सूची में 112वें स्थान पर है।

🌱 डेनमार्क सबसे ऊपर, लेकिन भारत फिसड्डी क्यों है ?
EPI 2022 की रैंकिंग में डेनमार्क को सबसे टॉप पर रखा गया है। भारत 180वीं पायदान पर है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि केंद्र की सरकार ने मौजूदा पर्यावरण कानूनों को मजबूत करने और नए कानून बनाने की जगह उन्हें और शिथिल कर रखा है। तटीय नियमन जोन, वन्यजीव कानून, जंगलों में खनन से जुड़े कानून, सभी पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। केंद्र सरकार का जोर पर्यावरण को सुधारने की जगह उद्योगों को सहूलियत देने पर है।

पश्चिमी घाट पर औद्योगिक इकाईयों का दबाव है। सरकार मेगा इन्फ्रा प्रोजेक्टस को विकास ठहराती है, जबकि यही परियोजना देश के जंगलों को नुकसान पहुंचा रही हैं और शहरों की हरियाली को नष्ट कर रही हैं। पानी का प्रबंधन भी ठीक नहीं है, क्योंकि देश के तकबरीन सभी राज्यों में बोरवेल खोदने के लिए मनमाफिक तरीके से अनुमति दी जा रही है। नतीजतन पानी खारा हो रहा है और जल स्रोत दूषित हो रहे हैं। ऐसे समय, जब दुनिया के अधिकांश देश कोयले पर आधारित बिजली पर निर्भरता को कम कर रहे हैं, भारत में कोयले का उत्पादन और निर्यात दोनों बढ़ाया जा रहा है। इससे पैदा हुआ कार्बन डाइऑक्साइड पूरे देश में भयंकर गर्मी पैदा कर रहा है।

Greenhouse Emission India ranks lowest among 180 countries in environmental performance index.

India's 'EPI 2022' at the bottom of the list of 'EPI 2022' in Environmental Protection, the situation of India is worrisome, so far the worst performance.

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