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बेंगलुरू, 13 मई: कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद अब भाजपा में चिंतन-मंथन का सिलसिला शुरू हो चुका है, क्योंकि राजनीतिक पंडित कर्नाटक के चुनावी नतीजे को आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं, जिसे देखते हुए निसंदेह भाजपा के लिए चिंतन-मंथन अनिवार्य हो जाता है. बता दें कि 224 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस ने 136 सीटों पर जीत का परचम लहारया है, तो वहीं भाजपा ने 65 और जेडीएस 19 सीटों पर सिमटकर रह गई है. हालांकि, नतीजों से पूर्व यह संभावना जताई जा रही थी कि जेडीएस किंगमेकर की भूमिका निभा सकती है, लेकिन अफसोस यह संभावनाएं वास्तविकता में तब्दील नहीं हो पाईं. इस चुनाव में अगर किसी की बल्ले-बल्ले हुई है, तो वो कोई और नहीं, बल्कि कांग्रेस है. कर्नाटक में कांग्रेस ने कमाल कर दिखाया है. इस अप्रत्याशित जीत से जहां कांग्रेस में खुशी की लहर है, तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा में चिंतन-मंथन का दौर शुरू हो चुका है.
कर्नाटक में भाजपा की करारी हार के पीछे मजबूत चेहरे का न होना और सियासी समीकरण साधने में नाकामी जैसी बड़ी वजहें रही हैं. विरोधी लहर की काट नहीं तलाश पाना भी रहा है. भाजपा के सत्ता में रहने की वजह से उसके खिलाफ लोगों में नाराजगी थी. भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर हावी रही, जिससे निपटने में भाजपा पूरी तरह से असफल रही.
👉🏻 भाजपा की हार के पांच बड़े कारण
1) - येदियुरप्पा जैसे दिग्गज नेताओं को साइड लाइन करना महंगा पड़ा: कर्नाटक में बीजेपी को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा इस बार के चुनाव में साइड लाइन रहे. पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी का बीजेपी ने टिकट काटा तो दोनों ही नेता कांग्रेस का दामन थामकर चुनाव मैदान में उतर गए. येदियुरप्पा, शेट्टार, सावदी तीनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं जिन्हें नजर अंदाज करना बीजेपी को महंगा पड़ गया.
2)- ध्रुवीकरण का दांव नहीं आया काम: कर्नाटक में एक साल से बीजेपी के नेता हलाला, हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दे उठाते रहे. ऐन चुनाव के समय बजरंगबली की भी एंट्री हो गई लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण की ये कोशिशें बीजेपी के काम नहीं आईं. कांग्रेस ने बजरंग दल को बैन करने का वादा किया तो बीजेपी ने बजरंग दल को सीधे बजरंग बली से जोड़ दिया और पूरा मुद्दा भगवान के अपमान का बना दिया. बीजेपी ने जमकर हिंदुत्व कार्ड खेला लेकिन यह दांव भी काम नहीं आ सका.
3)- भ्रष्टाचार: बीजेपी की हार के पीछे अहम वजह भ्रष्टाचार का मुद्दा रहा. कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ शुरू से ही '40 फीसदी पे-सीएम करप्शन' का एजेंडा सेट किया और ये धीरे-धीरे बड़ा मुद्दा बन गया. करप्शन के मुद्दे पर ही एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो एक बीजेपी विधायक को जेल भी जाना पड़ा. स्टेट कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने पीएम तक से शिकायत डाली थी. बीजेपी के लिए यह मुद्दा चुनाव में भी गले की फांस बना रहा और पार्टी इसकी काट नहीं खोज सकी.
4)- कर्नाटक में मजबूत चेहरा न होना: कर्नाटक में बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह मजबूत चेहरे का न होना रहा है. येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को बीजेपी ने भले ही मुख्यमंत्री बनाया हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर रहते हुए भी बोम्मई का कोई खास प्रभाव नहीं नजर आया. वहीं, कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे. बोम्मई को आगे कर चुनावी मैदान में उतरना बीजेपी को महंगा पड़ा.
5)- सियासी समीकरण नहीं साध सकी भाजपा: कर्नाटक के राजनीतिक समीकरण भी भाजपा साधकर नहीं रख सकी. बीजेपी न ही अपने कोर वोट बैंक लिंगायत समुदाय को अपने साथ जोड़े रख पाई और ना ही दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगा समुदाय का ही दिल जीत सकी. वहीं, कांग्रेस मुस्लिमों से लेकर दलित और ओबीसी को मजबूती से जोड़े रखने के साथ-साथ लिंगायत समुदाय के वोटबैंक में भी सेंधमारी करने में सफल रही है.
Five big reasons for BJP's defeat in Karnataka assembly elections