देश में बिजली संकट: 72 थर्मल संयंत्रों के पास सिर्फ तीन दिन का कोयला, बिजली संकट की 5 बड़ी वजह, देश में बन सकते हैं चीन जैसे हालात #IndiaElectricityCrises #ThermalPower #Coal

देश में बिजली संकट: 72 थर्मल संयंत्रों के पास सिर्फ तीन दिन का कोयला, 

बिजली संकट की 5 बड़ी वजह,

देश में बन सकते हैं चीन जैसे हालात

नई दिल्ली, 03 ऑक्टोबर: देश में भी चीन की तरह ही बिजली संकट (Electricity Crisis)
की आशंका है। विशेषज्ञों ने केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय व अन्य एजेंसियों की तरफ से जारी कोयला (Coal) उपलब्धता के आंकड़ों का आकलन कर यह चेतावनी दी है। मंत्रालय की मानें, तो देश के 135 थर्मल पावर संयंत्रों (Thermal Power Station) में से 72 के पास महज तीन दिन (3 Days) और बिजली बनाने लायक कोयला बचा है। 

ये संयंत्र कुल खपत का 66.35 फीसदी बिजली उत्पादन करते हैं। इस लिहाज से देखें तो 72 संयंत्र बंद होने पर कुल खपत में 33 फीसदी बिजली की कमी हो सकती है। सरकार (Government) के अनुसार, कोरोना (Corona) से पहले अगस्त-सितंबर (August-September) 2019 में देश में रोजाना 10,660 करोड़ यूनिट बिजली (Crore Unit Electricity) की खपत थी, जो अगस्त-सितंबर 2021 में बढ़कर 12,420 करोड़ यूनिट हो चुकी है। 

उस दौरान थर्मल पावर संयंत्रों (Thermal Power Station) में कुल खपत का 61.91 फीसदी बिजली उत्पादन (Electricity Generation) हो रहा था। इसके चलते दो साल (2-Years) में इन संयंत्रों में कोयले की खपत भी 18% बढ़ चुकी है।

🕹️ यहां भी चिंता के संकेत
बाकी 50 संयंत्रों में से भी चार के पास महज 10 दिन और 13 के पास 10 दिन से कुछ अधिक की खपत लायक ही कोयला बचा है।

🚢 आयातित कोयला तीन गुना महंगा
दो साल में इंडोनेशियाई (Indonesia) आयातित कोयले (Coal) की कीमत (Price) प्रति टन 60 डॉलर से तीन गुना बढ़कर 200 डॉलर तक हो गई। इससे 2019-20 से ही आयात घट रहा है। लेकिन तब घरेलू उत्पादन से इसे पूरा कर लिया था।

🔎 केंद्र सरकार ने बनाई निगरानी समिति
केंद्र ने स्टॉक की सप्ताह में दो बार समीक्षा के लिए कोयला मंत्रालय के नेतृत्व में समिति बनाई है। केंद्रीय बिजली प्राधिकरण (Central Electricity Authority) (CEA), कोल इंडिया लि. (Coal India Ltd.) पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉर्पोरेशन, रेलवे और ऊर्जा मंत्रालय (Railway And Energy Ministry) की भी कोर प्रबंधन टीम (Core Management Team) बनाई गई है, जो रोज निगरानी (Daily Observation) कर रही है।

➡️ सरकार की नजर में इसलिए बिगड़े हालात
🔹अर्थव्यवस्था सुधरी : यह वैसे तो सकारात्मक (Positive) है, पर इस वजह से देश में बिजली की मांग तेजी से बढ़ी।

🔹कोयला खदान क्षेत्रों में भारी बारिश : सितंबर में भारी बारिश से उत्पादन व आपूर्ति प्रभावित हुई।

🔹 कीमतें बढ़ीं : कोयला महंगा होने से खरीद सीमित, उत्पादन भी कम।

🔹 मानसून से पहले स्टॉक नहीं : सरकार के अनुसार कंपनियों को यह कदम पहले से उठाना चाहिए था।

🔹 राज्यों पर भारी देनदारी : उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश (Uttar Pradesh, Maharashtra, Rajasthan, Tamilnadu, Madhya Pradesh) पर कंपनियों का भारी बकाया।

📛 अगस्त में मिल चुकी थी कोयला संकट की आहट
कोयला संकट का आकलन दो महीने पहले उस समय ही आ चुका था, जब एक अगस्त को भी महज 13 दिन का ही कोयला भंडारण बचा हुआ था। उस समय थर्मल प्लांट प्रभावित हुए थे और अगस्त के आखिरी हफ्ते में बिजली उत्पादन में 13 हजार मेगावाट (Megawalt) की कमी हो गई थी। सीएमटी (CMT) के हस्तक्षेप ने तब हालात सुधारे थे, लेकिन उत्पादन में अब भी 6960 मेगावाट की कमी चल रही है। दरअसल, कोरोना की दूसरी लहर कम होने के साथ ही औद्योगिक गतिविधियां रफ्तार पकड़ने लगी थीं और इसके साथ ही कोयले की खपत भी बढ़ गई।

💡बढ़ती रहेगी बिजली की मांग इसलिए कर रहे यह उपाय
⏺️ सरकार का अनुमान है कि बिजली की मांग बढ़ती रहेगी। इसलिए जरूरी है रोजाना कोयला आपूर्ति को खपत से ज्यादा बढ़ाया जाए।

⏺️ सरकार ने 700 मीट्रिक टन कोयला खपत का अनुमान लगाया है और आपूर्ति के निर्देश दिए हैं।

⏺️ सीईए (CEA) ने कोयले का बकाया नहीं चुकाने वाली बिजली कंपनियों को सप्लाई सूची में नीचे व नियमित भुगतान वाली कंपनियों को प्राथमिकता देने की सिफारिश की।