गजब का ऑफर सुन दुकानों के बाहर उमड़ी भीड़
बुलानी पड़ी पुलिस
नई दिल्ली, 13 फरवरी : राजधानी में शराब की बिक्री बढ़ाने के लिए वेंडर (ठेकेदारों) की तरफ से 35 फीसदी तक की छूट दिए जाने पर शनिवार को शराब की दुकानों पर भारी भीड़ लग गई। विशेष ऑफर के बीच कुछ इलाकों में हालात इतने बिगड़ गए कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा।
स्थानीय ब्रांड के साथ ही विदेशी शराब को भी छूट की श्रेणी में रखकर बिक्री की गई।
बता दें कि बीते साल 17 नवंबर को नई आबकारी नीति लागू की गई थी, जिसके बाद से 849 दुकानों में से अभी तक कुल 564 दुकानों का संचालन ही शुरू हो पाया है। नई आबकारी नीति के तहत वेंडरों को अपने स्तर पर शराब की बिक्री बढ़ाने के लिए छूट देने का प्रावधान है। बताया जा रहा है कि कुछ इलाकों की दुकानों की शराब की बिक्री बेहद सीमित थी, जबकि उनके पास स्टॉक काफी ज्यादा था।
ऐसे में ठेका संचालकों पर दबाव था कि वो बिक्री को बढ़ाने के लिए काम करें। स्टॉक ज्यादा होने, निर्धारित कोटा खत्म न होने और बिक्री बढ़ाने के दबाव के बीच शुक्रवार शाम को कुछ इलाकों में छूट दी गई। इसके बाद अचानक से उनकी बिक्री में उछाल आया। बिक्री का आंकड़ा बढ़ा तो शनिवार को कुछ अन्य शराब की दुकानों ने भी अपनी बिक्री को प्रभावित होने से बचाने के लिए छूट का ऑफर दे दिया।
साकेत, पीतमपुरा, सरोजिनी नगर के साथ ही बॉर्डर से सटे इलाकों में भी दोपहर तक छूट दी जाने लगी। इसके बाद राजधानी की काफी दुकानों पर ऑफर देने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई। इससे शराब खरीदने के लिए दुकानों के बाहर भीड़ उमड़नी शुरू हो गई। कई जगह लंबी-लंबी लाइन लग गई। हालात इतने बिगड़े कि कुछ इलाकों में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा।
➡️ विदेशी ब्रांड पर अधिक, देशी पर कम
शराब ठेका संचालकों को विदेशी यानी आयातित ब्रांड पर सबसे ज्यादा मुनाफा होता है। महंगी शराब पर मुनाफा भी अच्छा खासा होता है। इसलिए उस पर छूट देने में कोई परेशानी नहीं होती है। इसलिए विदेशी मदिरा पर कुछ शराब की दुकानों पर 35 फीसदी तक की छूट दी गई। इसके अतिरिक्त स्वदेशी अंग्रेजी ब्रांड पर भी 20 से 27 फीसदी तक की छूट दी गई। इसके साथ ही देशी शराब पर भी 10 से 15 फीसदी तक का ऑफर दिया गया। अब हर तरह के ब्रांड पर छूट मिलने से सभी श्रेणी के लोग अपनी पसंद की शराब खरीदने के लिए उमड़ पड़े।
➡️ बिक्री बढ़ाने का दबाव
जानकार कहते हैं कि भले ही दिल्ली में नई आबकारी नीति लागू हो गई हो लेकिन अभी तक 285 दुकानें खुलनी बाकी हैं। इनमें से एयरपोर्ट पर अभी तक शराब की दुकानों का संचालन नहीं हो पाया है। जहां बड़ी बिक्री होती है। इसलिए राजधानी में शराब की बिक्री नई आबकारी नीति लागू होने से पहले की स्थिति के बराबर नहीं है, जिसको देखते हुए आबकारी विभाग के ऊपर दबाव है कि शराब की बिक्री का आंकड़ा बढ़ाया जाए।
इसलिए लंबे समय से दबाव था कि बिक्री को बढ़ाने के लिए वेंडर अपने स्तर पर ऑफर पेश करें, जिससे पुराने लक्ष्य को हासिल किया जा सके। विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि बीते वर्ष जनवरी से अगस्त 2021 तक बिक्री में छह फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई लेकिन सितंबर से दिसंबर 2021 के बीच 16 फीसदी की गिरावट देखी गई।
➡️ वेंडर के बीच प्रतिस्पर्धा
राजधानी में नई आबकारी के तहत दिल्ली के 272 वार्डों को 32 जोन में बांटकर लाइसेंस आवंटित किए गए हैं। इससे जोन वार अलग-अलग वेंडर को शराब की बिक्री का लाइसेंस मिला है। अब वेंडर्स में अलग होने से बिक्री बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्धा छिड़ गई, जिसमें अचानक से राजधानी के अंदर शराब के ब्रांड पर छूट की भरमार सी आ गई, जिससे ग्राहकों की मौज आ गई।
➡️ हरियाणा-यूपी से पहुंचे खरीदार
छूट के बीच कुछ इलाकों में शराब की कीमतें काफी कम हो गईं। खासकर बॉर्डर एरिया से सटे इलाकों में छूट मिलने से हरियाणा और यूपी के ग्राहक भी फायदा होता देख राजधानी के ठेकों पर शराब खरीदने के लिए पहुंचे।
कंफेडरेशन ऑफ इंडिया अल्कोहल बेवरेज कंपनी के डायरेक्टर जनरल विनोद गिरी ने कहा, 'नई आबकारी नीति के तहत वेंडर को बिक्री बढ़ाने के लिए छूट के साथ अन्य तरह के आकर्षक ऑफर देने की अनुमति है। दिल्ली में अभी तक छूट नहीं मिलती थी। अब वेंडर पर बिक्री बढ़ाने का दबाव है, जिसके चलते पहले कुछ इलाकों की दुकानों पर छूट के बोर्ड लगे तो फिर बाकी ने भी अपनी बिक्री को बचाने के लिए छूट देने शुरू कर दी। इससे शराब की दुकानों पर भारी भीड़ लग गई। दूसरी सच्चाई यह भी है कि अभी राजधानी में शराब की बिक्री बीते साल की तुलना में कम थी, जिसे बढ़ाने का दबाव भी था।'
दिल्ली लिकर एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेश गोयल ने कहा, 'यह बात सही है कि दिल्ली में शराब की बिक्री अभी बीते साल की तुलना में नहीं पहुंची है, जिसको बढ़ाने के लिए अब वेंडर अपनी तरफ से ऑफर दे रहे हैं लेकिन इससे पूरे सेक्टर को नुकसान होगा। यह कारोबार ही मुनाफे का नहीं रहेगा। क्योंकि, जो भी छूट दी जा रही है, उसमें सरकार का कुछ नहीं जा रहा है। वेंडर यानी ठेका संचालक को अपने मुनाफे में से कम करना है।'