लेकिन MSP से ज्यादा खरीद के 'खेल' ने बिगाड़े हालात
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नई दिल्ली, 14 मई: दुनिया में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा गेहूं की पैदावार करने वाले अपने देश में जब शनिवार की सुबह यह फैसला लिया कि अब देश का गेहूं दुनिया के मुल्कों में नहीं जाएगा, तो न सिर्फ देश बल्कि पूरी दुनिया में उथल-पुथल मच गई।
लेकिन जो फैसला पूरी दुनिया के लिए शनिवार को अचानक लिया गया दिखा दरअसल उसके पीछे कहानी कुछ और ही है। वाणिज्य मंत्रालय और देश में गेहूं की खरीद करने वाली राज्यों के अलग-अलग एजेंसियों के आंकड़े इस बात की तस्दीक अप्रैल में ही करने लगे थे कि हालात कुछ ऐसे बन रहे हैं कि जून से गेहूं के निर्यात में या तो बड़ी कटौती की जाए या उसे पूरी तरीके से बंद कर दिया जाए। लेकिन बिगड़ते हालात के बीच सरकार को यह फैसला मई में ही लेना पड़ा।
देश के अलग-अलग राज्यों में गेहूं की खरीद केंद्रों की निगरानी करने वाली केंद्रीय एजेंसी से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि बाजार में न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएससी से अधिक कीमत की गेहूं की खरीद और पैदावार में कमी के कारण सरकारी खरीद प्रभावित हुई। जब गेहूं की खरीद सरकारी केंद्रों पर हो रही थी, उस दौरान आने वाले आंकड़े इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि आने वाले दिनों में भारत अन्य देशों को भेजे जाने वाले गेहूं के निर्यात पर या तो प्रतिबंध लगा सकता है या उनमें कटौती कर सकता है।
➡️ सरकार के राज में व्यापारियों ने किया खेल
नेशनल एग्रीकल्चर ट्रेड फेडरेशन के दिगंबर सिंह बाजवा तो सरकार पर ही सवालिया निशान लगाते हैं। वह कहते हैं कि सरकार को इस बात की ओर ध्यान देना चाहिए था, जब एमएसपी से ज्यादा कीमत देकर व्यापारियों ने किसानों से गेहूं की खरीद की और इस गेहूं को विदेशों में भेजा जाने लगा। तो सरकार को इस पर अपनी योजनाएं बनाकर व्यवस्थाओं को दुरुस्त करना चाहिए था, लेकिन सरकार इस मामले में फेल हो गई। वह कहते हैं कि यह सिर्फ एक राज्य की कहानी नहीं है, बल्कि देश के ज्यादातर राज्यों में ऐसा हुआ, लेकिन सरकार और सरकारी तंत्र इससे अनजान बना रहा। वह कहते हैं कि अब हालात पूरी तरीके से बदल चुके हैं। यही वजह है कि निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
केंद्रीय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि बाजार में बैठा व्यापारी जब सरकारी कीमत से ज्यादा कीमत पर किसानों से फसल खरीदता है, तो किसान फिर विक्रय केंद्रों पर जाकर धक्के क्यों खाए। केंद्र सरकार की योजना के मुताबिक 2022-23 में एक करोड़ टन गेहूं निर्यात का लक्ष्य रखा गया है। जबकि 2021-22 में भारत में तकरीबन 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था। इसी से उत्साहित होकर सरकार ने इस बार निर्यात का लक्ष्य बढ़ा दिया। लेकिन उत्पादन कम होने के साथ-साथ अलग-अलग राज्यों से होने वाली गेहूं की खरीद में कमी और गेहूं से जुड़े उत्पादों की महंगाई देश में गेहूं के निर्यात के प्रतिबंध का सबसे बड़ा कारण बनी।
➡️ सरकार ने केवल 155 टन गेहूं खरीदा
गेहूं को निर्यात करने वाली केंद्रीय एजेंसी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं रूस और यूक्रेन के युद्ध के बाद से भारत में बीते दो से ढाई महीने के भीतर ही तकरीबन डेढ़ अरब डॉलर के गेहूं का निर्यात किया है। ट्रेड फेडरेशन से जुड़े अनिल सिंह कहते हैं कि अगर आप केंद्र सरकार के आंकड़े देखेंगे तो पता चलेगा कि पिछले एक दशक में इस साल अब तक सबसे कम गेहूं खरीद का अनुमान लगाया जा रहा है। केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इस साल सरकार ने 444 टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा था जबकि मई के पहले हफ्ते तक महज 155 टन के करीब ही खरीद हो पाई है। फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के सदस्य एसएन साहू कहते हैं कि गेहूं के निर्यात पर रोक लगने से निश्चित तौर पर बाजार में अलग-अलग तरह की अनिश्चितता देखने को मिल रही है। साहू को भरोसा है कि सरकार के पास में न तो गेहूं भंडार की कोई कमी है और न ही गेहूं और उससे जुड़े उत्पादों की महंगाई बहुत ज्यादा दिनों तक रहेगी। साहू का तर्क है कि निर्यात पूरी तरीके से बंद होने के चलते अगले कुछ दिनों में गेहूं से जुड़े उत्पादों की कीमतों में कमी आनी तय है।
Wheat Export Ban: It was decided in April itself that the export of wheat would be stopped, but the 'game' of buying more than MSP spoiled the situation.
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