भारत को कब मिलेगी बढ़ती आबादी से आजादी?When will India get freedom from increasing population?

भारत को कब मिलेगी बढ़ती आबादी से आजादी?

भारत की आजादी के बाद पहली बार साल 1951 में जनगणना की गई, उस वक्त देश की कुल आबादी महज 36 करोड़ थी। इसके बाद जनसंख्या तेजी से बढ़ने लगी और आज 2023 में भारत की आबादी 142 करोड़ से ज्यादा हो गई। आज से करीब 72 साल पहले किसी ने भी ये अंदाजा नहीं लगाया था कि भारत की आबादी में 106 करोड़ की बढ़ोतरी हो जाएगी।

भारत और चीन के बाद अमेरिका का नंबर है। अमेरिका की आबादी करीब 34 करोड़ है। इसके बाद इंडोनेशिया, पाकिस्तान और ब्राजील का स्थान है। आबादी के मामले में भारत के शीर्ष पर पहुंचने की रिपोर्ट पर केंद्र ने कोई टिप्पणी नहीं की है। हालांकि, कई राजनेताओं और समाजशास्त्रियों ने इसको लेकर सवाल उठाए हैं।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की रिपोर्ट जारी होने से कई चीजें बदल गई हैं। आइए इस स्टोरी में विस्तार से उन बातों को जानते हैं, जो न कहीं लिखा गया है और न कहीं पढ़ा गया।

आज से 75 साल पहले पृथ्वी के 2.4 प्रतिशत भूभाग पर 14.9 प्रतिशत आबादी वाले भारत को स्वतंत्रता मिली। इसी के साथ तेजी से बढ़ रहे भारतवासियों के अच्छे जीवन के लिए अच्छा शिक्षा-चिकित्सा, पर्याप्त भोजन और रोजगार आदि उपलब्ध कराने की चिंता की जाने लगी। आजादी के तुरंत बाद सरकार को समझ आ चुका था कि इतनी बड़ी आबादी के लिए संसाधन उपलब्ध कराना भविष्य में कठिन होगा।

1951 में स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना कराई गई और पाया गया कि भारत की कुल जनसंख्या लगभग 36 करोड़ है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत ने 1952 में दुनिया का पहला परिवार नियोजन कार्यक्रम प्रारंभ किया। इसके बावजूद 1961 की जनगणना में भारत की आबादी बढ़कर लगभग 44 करोड़ होने के साथ चिंताएं और बढ़ीं।

इसी को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1963 में भारत सरकार द्वारा देश का पहला विस्तृत कंडोम वितरण कार्यक्रम चलाया गया। उस कंडोम का नाम ‘कामराज’ रखा गया, परंतु तत्कालीन कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का नाम के. कामराज होने के कारण उसका नाम बदल कर ‘निरोध’ रख दिया गया।

वर्ष 1966 में भारत के नागरिकों को परिवार नियोजन के लिए गर्भ निरोधक सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए हिंदुस्तान लेटेक्स लिमिटेड नामक एक पीएसयू की स्थापना की गई। इस सबके बावजूद 1971 की जनगणना में देश की आबादी बढ़कर लगभग 55 करोड़ हो गई। अभी तक परिवार नियोजन हमारे संविधान का अंग नहीं था। वर्ष 1976 में संविधान के 42वें संशोधन द्वारा संविधान की सातवीं अनुसूची में वर्णित समवर्ती सूची में जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन को जोड़ा गया। जनसंख्या नियंत्रण के लिए वृहद स्तर पर लक्ष्य आधारित नसबंदी कार्यक्रम भी चलाए गए। उस समय भारत में लगभग 62 लाख लोगों की नसबंदी कराई गई। इन सभी प्रयासों के बाद भी 1981 की जनगणना में देश की जनसंख्या बढ़कर लगभग 68 करोड़ हो गई।

पिछली सदी के छठे दशक में भारत के जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रमों को दृष्टिगत रखते हुए चीन ने भी इस दिशा में प्रयास शुरू किए और चीन को उस लक्ष्य की पूर्ति में सफलता भी मिलने लगी। 1979 में भारत की प्रति व्यक्ति आय और अर्थव्यवस्था चीन के लगभग बराबर थी। जबकि चीन क्षेत्रफल और संसाधनों की दृष्टि से भारत से तीन गुने से भी अधिक बड़ा है। जनसंख्या नियंत्रण के पश्चात चीन की अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में आज कहां है, इसे बताने की आवश्यकता नहीं।

जनसंख्या नियंत्रण के उद्देश्य से 1983 में देश का पहला निजी विधेयक संसद में प्रस्तुत किया गया। तब से लेकर आज तक विभिन्न दलों के 45 सांसदों ने संसद में जनसंख्या नियंत्रण के लिए निजी विधेयक पेश किए। नेशनल हेल्थ पालिसी, 1983 में बताया गया कि कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में गिरावट की मौजूदा दर के हिसाब से भारत वर्ष 2000 में प्रतिस्थापन स्तर यानी 2.1 टीएफआर को प्राप्त कर लेगा। जबकि वर्तमान राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 के अनुसार देश ने उस दर को 2022 में प्राप्त किया। यह सिद्ध करता है कि जिस तेजी से हमारी जनसंख्या कम होनी चाहिए थी, उतनी तेजी से कम नहीं हुई। भारत की बढ़ती जनसंख्या की चिंता के बाद भी 1991 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 68 करोड़ से बढ़कर लगभग 85 करोड़ हो गई।

जनप्रतिनिधि एवं अधिकारी समाज के लिए एक आदर्श बनें। उन्हें देखकर अन्य देशवासी भी कम बच्चों को जन्म देने के लिए प्रेरित हो सकें, ऐसी मंशा से पीवी नरसिंह राव सरकार द्वारा दो महत्वपूर्ण निर्णय किए गए। पहला 79वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया। इसके जरिये विधायकों और सांसदों को दो बच्चों की नीति के दायरे में लाना था। यदि वह बिल संसद में पास हो जाता तो दो से अधिक बच्चों वाला कोई भी व्यक्ति विधायक या सांसद नहीं बन सकता था, परंतु अनेक सांसदों और दलों के विरोध के कारण उस बिल पर चर्चा नहीं हो सकी। इसके बाद आल इंडिया सर्विसेज कंडक्ट रूल्स, 1968 में संशोधन करके 17ए जोड़ा गया। उसके अनुसार भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा एवं भारतीय वन सेवा के सभी अधिकारियों पर दो से अधिक बच्चों को जन्म देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया, परंतु जनसंख्या नियंत्रण के उद्देश्य से बने इस नियम का आज तक पालन नहीं किया जाता।

वर्ष 2000 में भारत में नई जनसंख्या नीति लागू की गई। इसके बावजूद भारत की जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 2001 में 102 करोड़ से बढ़कर 121 करोड़ हो गई। लाल किले से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी जनसंख्या विस्फोट के विषय में देश को आगाह कर चुके हैं, जिसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। कोविड-19 के कारण 2021 में होने वाली जनगणना समय से नहीं हो पाई, जिससे जनसंख्या के वर्तमान आंकड़ों के बारे में नहीं बताया जा सकता, लेकिन हाल में आई संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने जनसंख्या में चीन को पीछे छोड़कर विश्व में प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया है।

सोचने की बात है कि जनसंख्या नियंत्रण के विषय में विश्व में सबसे पहले सोचने वाला हमारा देश आज दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन चुका है और फिर भी कुछ बुद्धिजीवी जनसंख्या नियंत्रण के लिए उचित नीति बनाने के विरोध में लगातार कुतर्क करते हैं। जब हम आजादी के 75 वर्षों बाद आजादी का अमृतकाल मना रहे हैं तब एक प्रश्न मन में जरूर आना चाहिए कि भारत को कब मिलेगी बढ़ती आबादी से आजादी?

When will India get freedom from increasing population?

For the first time after India's independence, the census was done in the year 1951, at that time the total population of the country was only 36 crores.  After this, the population started increasing rapidly and today in 2023, the population of India has increased to more than 142 crores.  About 72 years ago, no one had predicted that India's population would increase by 106 crores.

America is number after India and China.  The population of America is about 340 million.  It is followed by Indonesia, Pakistan and Brazil.  The center has not commented on the report of India reaching the top in terms of population.  However, many politicians and sociologists have raised questions about this.

Many things have changed since the release of the United Nations Population Fund report.  Let us know in detail those things in this story, which have neither been written nor read anywhere.

In the year 2000, the new population policy was implemented in India.  Despite this, the population of India has increased from 102 crores in 2001 to 121 crores as per 2011 census.  Prime Minister Narendra Modi has also warned the country from the Red Fort about population explosion, which needs to be taken seriously.  Due to Kovid-19, the census to be held in 2021 could not be done in time, due to which the current population figures cannot be told, but according to the recent report of the United Nations Population Fund, India has overtaken China in the world population.  Got first position in

It is a matter of thought that our country, which was the first to think about population control in the world, has today become the world's most populous country, and yet some intellectuals continue to protest against formulating a proper policy for population control.  When we are celebrating the immortality of independence after 75 years of independence, then one question must come in our mind that when will India get freedom from increasing population?